Imran Pratapgarhi Shayari: आज हम आपके लिए उर्दू और हिंदी के शायर मोहम्मद इमरान प्रतापगढ़ी जी की कुछ चुनिंदा शायरी लेकर आए हैं, जो आपको जरूर पसंद आएंगी।
Imran Pratapgarhi Shayari
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अपनी सांसो में आबाद रखना मुझे,
में रहू ना रहू याद रखना मुझे…..!!
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अपनी मोहब्बत का यो बस एक ही उसूल है,
तू कुबूल है और तेरा सबकुछ कुबूल है।
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एक बुरा दौर आया है टल जाएगा,
वक़्त का क्या है एक दिन बदल जाएमा
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तेरे चेहरे में एैसा क्या है आख़िर,
जिसे बरसों से देखा जा रहा है !!!
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अपनी सांसो में आबाद रखना मुझे.
में रहू ना रहू याद रखना मुझे…..!!
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एक बुरा दौर आया है टल जाएगा
वक़्त का क्या है एक दिन बदल जाएमा
इमरान प्रतापगढ़ी शायरी रेख़्ता
दिल के हर ख़ाली गिलास में प्यार का अमृत ढाला जाए
मंदिर में एक दीप जले तो मस्जिद तलक उजाला जाए
कब तक तन्हा तन्हा उम्र गुजारें हम
अब ये ज़रूरी है कोई हमराज़ मिले
में मर के जीना सीखा रहा हु
में जीके मरना सिखा रहा हूं
हर तरफ़ जुल्म की साज़िशें हैं
इनसे बचने की गर ख़्वाहिशें हैं
हाथों की लकीरें पढ कर रो देता है दिल
सब कुछ तो है मगर एक तेरा नाम क्यूँ नहीं है…
ज़माने पर भरोसा करने वालों,
भरोसे का ज़माना जा रहा है !
तेरे चेहरे में ऐसा क्या है आख़िर,
जिसे बरसों से देखा जा रहा है !!!
मोहब्बत के सभी मंजर बड़े खाली से लगते हैं,
अख़ीदत से कहे अल्फाज़ भी झाली से लगती हैं,
वो रोहित बेमूला की मौत पर आंसू बहाता है,
मगर उस शाख के आंसू भी
घड़ियाल (मगर-मच) से लगते हैं..
मेरे खुलूस की गहराई से नहीं मिलते
ये झूठे लोग हैं सच्चाई से नहीं मिलते
मोहब्बतों का सबक दे रहे हैं दुनिया
को जो ईद अपने सगे भाई से नहीं मिलते.!
उसी जगह पर जहाँ कई रास्ते मिलेंगे,
पलट के आए तो सबसे पहले तुझे मिलेंगे।
अगर कभी तेरे नाम पर जंग हो गई तो,
हम ऐसे बुजदिल भी पहली सफ़ में खड़े मिलेंगे।
अब ना मैं हूँ ना बाकी हैं ज़माने मेरे
फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे,
जिन्दगी है तो नए ज़ख्म भी लग जाएंगे.
अब भी बाकी हैं कई दोस्त पुराने मेरे ।
हमने सीखा है ये रसूलों से,
जंग लड़ना सदा उसूलों से !
नफरतों वाली गालियाँ तुम दो,
हम तो देंगे ज़वाब फूलों से !!
राह में ख़तरे भी हैं, लेकिन ठहरता कौन है,
मौत कल आती है, आज आ जाये डरता कौन है!
तेरी लश्कर के मुक़ाबिल मैं अकेला हूँ मगर,
फ़ैसला मैदान में होगा कि मरता कौन है !!
हमने उसके जिस्म को फूलों की वादी कह दिया,
इस जरा सी बात पर हमको फसादी कह दिया,
हमने अख़बर बनकर जोधा से मोहब्बत की,
मगर सिरफिरे लोगों ने हमको लव जिहादी कह दिया।
इमरान प्रतापगढ़ी का मुशायरा
हाथों की लकीरें पढ कर रो देता है
दिल सब कुछ तो है मगर एक तेरा नाम क्यूँ नहीं है…
अब ना मैं हूँ ना बाकी हैं ज़माने मेरे
फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे,
जिन्दगी है तो नए ज़ख्म भी लग जाएंगे.
अब भी बाकी हैं कई दोस्त पुराने मेरे ।
हवा कुछ ऐसी चली है बिखर गए होते
रगों में खून न होता तो मर गए होते
ये सर्द रात ये आवारगी ये नींद का बोझ
हम अपने शहर में होते तो घर गए होते
हमीं ने जख्मे-दिलो-जां छुपा लिए वरना
न जाने कितनों के चेहरे उतर गए होते
हमें भी दुख तो बहुत है मगर ये झूठ नहीं
भुला न देते उसे हम तो मर गए होते
सुकूने-दिल को न इस तरह से तरसते हम
तेरे करम से जो बच कर गुजर गए होते
जो हम भी उस से जमाने की तरह मिल लेते
हमारे शामो – ओ शहर भी संवर गए होते
तेरे चेहरे में एैसा क्या है आख़िर,
जिसे बरसों से देखा जा रहा है !!!
हमने सीखा है ये रसूलों से,
जंग लड़ना सदा उसूलों से !
नफरतों वाली गालियाँ तुम दो,
हम तो देंगे ज़वाब फूलों से !!