Firaq Gorakhpuri Shayari

Firaq Gorakhpuri Shayari

Firaq Gorakhpuri Shayari: Firaq Gorkhuri ji was a very influential poet of India. Read here some very special poetry in Hindi by Firaq Gorakhpuri, which you will definitely like.

Firaq Gorakhpuri Shayari

Firaq Gorakhpuri Shayari
फिराक गोरखपुरी की गजलें

आँखों में जो बात हो गई है
इक शरह-ए-हयात हो गई है

Firaq Gorakhpuri Shayari 2 Line

खामोश शहर की चीखती रातें,
सब चुप है पर, कहने को है हजार बातें… !

Firaq Gorakhpuri Shayari

मुझ को मारा है हर इक दर्द ओ दवा से पहले,
दी सज़ा इश्क़ ने हर जुर्म-ओ-ख़ता से पहले.!

फिराक गोरखपुरी की गजलें

तुम मुखातिब भी हो क़रीब भी हो
तुम को देखें कि तुम से बात करें.!

Firaq Gorakhpuri Shayari 2 Line

सोचूँ तो सारी उम्र मोहब्बत में कट गई,
देखूँ तो एक शख़्स भी मेरा नहीं हुआ. !

Firaq Gorakhpuri Shayari

ये माना जिंदगी है चार दिन की
बहुत होते हैं यारों चार दिन भी।

फिराक गोरखपुरी की गजलें

बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ जिन्दगी, हम दूर से पहचान लेते हैं.!

Firaq Gorakhpuri Shayari 2 Line

मुद्दतें गुजरी, तेरी याद भी आई ना हमें
और हम भूल गये हों तुझे, ऐसा भी नहीं

ये माना जिंदगी है चार दिन की
बहुत होते हैं यारों चार दिन भी ।

फिराक गोरखपुरी की गजलें

एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें
और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं.!

रफ्ता रफ्ता गैर अपनी ही नज़र में हो गए
वाह-री गफलत तुझे अपना समझ बैठे थे हम.!

कर पाओ तो कर लेना कीही हमारी सादगी से
क्योंकि सूरत कुछ खास नहीं हमारी ।,

ये माना जिंदगी है चार दिन की
बहुत होते हैं यारों चार दिन भी।

रात भी नींद भी कहानी भी
हाय क्या चीज़ है जवानी भी..।

खामोश शहर की चीखती रातें,
सब चुप है पर, कहने को है हजार बातें…!

सोचूँ तो सारी उम्र मोहब्बत में कट गई
देखूँ तो एक शख़्स भी मेरा नहीं हुआ.!

एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें
और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं !

मुझ से मत पूछो के उस शख़्स में क्या अच्छा है
अच्छे अच्छों से मुझे मेरा बुरा अच्छा है।

बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ जिन्दगी, हम दूर से पहचान लेते हैं.

Firaq Gorakhpuri Shayari 2 Line

नर्म फ़ज़ा की करवटें दिल को दुखा के रह गईं,
ठंडी हवाएँ भी तिरी याद दिला के रह गईं.

दीदार में इक-तरफ़ा दीदार नज़र आया,
हर बार छुपा कोई हर बार नज़र आया’.

अब अक्सर चुप चुप से रहें हैं यूँही कभू लब खोलें हैं,
पहले ‘फ़िराक़’ को देखा होता अब तो बहुत कम बोलें हैं’.

वक़्त-ए-गुरूब आज करामात हो गई,
जुल्फ़ों को उस ने खोल दिया रात हो गई’.

मायूसियों की गोद में दम तोड़ता है इश्क़,
अब भी कोई बना ले तो बिगड़ी नहीं है बात’.

मौत का भी इलाज हो शायद,
ज़िंदगी का कोई इलाज नहीं’.

‘फ़िराक़’ बाद को मुमकिन है यह भी हो न सके,
अभी तो हँस भी ले, कुछ रो भी ले, वो आएँ न आएँ.

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Author: Kuldeep

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